एड्स पीड़ितों से भेदभाव: डेढ़ साल पहले कानून बना पर लागू नहीं हुआ
सेहतराग टीम
अकसर हम किसी भी समस्या में कानून न होने या कानून होने पर भी उसका सही तरीके से पालन न किए जाने को दोष देते हैं मगर ये मामला जरा हटकर है। एचआईवी और एड्स के पीड़ितों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने संसद से कानून पास कराके उसपर राष्ट्रपति से भी दस्तखत करवा दिए। यानी कानून को अमली जामा पहनाने के लिए जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
इसके बाद सिर्फ इस कानून को लागू होने की अधिसूचना जानी की जानी थी मगर हद तो ये है कि पिछले सवा साल से इस कानून को अधिसूचित ही नहीं किया जा सका है इसलिए ये कानून अमल में नहीं आ पाया है।
इस स्थिति से नाराज दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 अगस्त को केंद्र से पूछा कि एचआईवी और एड्स मरीजों के साथ भेदभाव पर रोक लगाने से संबंधित कानून को पिछले साल अप्रैल में ही राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बावजूद उसने अबतक उसे क्यों अधिसूचित नहीं किया। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर बाबू की पीठ ने एक जनहित याचिका पर स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन को नोटिस जारी किया। इस याचिका में एचआईवी से ग्रस्त लेागों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून की अधिसूचना तत्काल जारी करने की मांग की गयी है।
पीठ ने सवाल किया, ‘आप कानून बनाते हैं लेकिन उसे अधिसूचित नहीं कर रहे हैं। क्यों?’ अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 26 नवंबर तय की। याचिकाकर्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी ने दावा किया है कि एचआईवी और एड्स (रोकथाम एवं नियंत्रण) कानून, 2017 की अधिसूचना जारी करने में देरी की वजह से ऐसे लोगों को प्राप्त सुनिश्चित अधिकारों का लाभ नहीं मिल रहा है।
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